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हार्वर्ड ने ट्रम्प की मांग ठुकारी, 2.2 अरब डॉलर की ग्रांट पर लगी रोक |
विश्व प्रसिद्ध हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की मांगों को ठुकराकर अपनी स्वतंत्रता और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करने का फैसला किया है। इसके जवाब में ट्रम्प प्रशासन ने यूनिवर्सिटी को मिलने वाली 2.2 अरब डॉलर की संघीय ग्रांट और 60 मिलियन डॉलर के कॉन्ट्रैक्ट्स पर रोक लगा दी है। यह कदम सोमवार को तब उठाया गया जब हार्वर्ड ने ट्रम्प प्रशासन की ओर से कैंपस में एक्टिविज्म को सीमित करने और डाइवर्सिटी, इक्विटी, और इनक्लूजन (DEI) प्रोग्राम्स को खत्म करने की मांग को सिरे से खारिज कर दिया।
हार्वर्ड
के प्रेसिडेंट एलन गार्बर ने
एक खुले पत्र में
यूनिवर्सिटी समुदाय को संबोधित करते
हुए कहा "कोई भी सरकार,
चाहे वह किसी भी
पार्टी की हो, निजी
यूनिवर्सिटी को यह नहीं
बता सकती कि वह
क्या पढ़ाए, किसे दाखिला दे,
किसे नियुक्त करे, या कौन
से शोध क्षेत्र में
काम करे।" उन्होंने जोर देकर कहा
कि हार्वर्ड अपनी कमियों को
दूर करने और अपने
मूल्यों को बनाए रखने
का काम खुद करेगा
न कि सरकारी दबाव
में आकर।
The university will not surrender its independence or relinquish its constitutional rights. Neither Harvard nor any other private university can allow itself to be taken over by the federal government. https://t.co/5k5t9RYYC2
— Harvard University (@Harvard) April 14, 2025
ट्रम्प
प्रशासन ने इस साल
फरवरी में एक टास्क
फोर्स बनाई थी जिसका
मकसद कथित तौर पर
कैंपस में एंटी-सेमिटिज्म
(यहूदी-विरोधी भावना) से निपटना था।
इस टास्क फोर्स ने हार्वर्ड सहित
कई यूनिवर्सिटीज़ को निशाना बनाया
और उनसे नीतिगत बदलाव
करने की मांग की।
हार्वर्ड पर दबाव था
कि वह अपने स्टूडेंट्स
और फैकल्टी की एक्टिविज्म गतिविधियों
पर लगाम लगाए, साथ
ही एडमिशन और हायरिंग में
"व्यूपॉइंट डाइवर्सिटी" को प्राथमिकता दे।
लेकिन हार्वर्ड ने इसे अपनी
स्वायत्तता पर हमला बताते
हुए इन मांगों को
अस्वीकार कर दिया।
इसके
जवाब में ट्रम्प प्रशासन
ने तुरंत 2.2 अरब डॉलर की
मल्टी-ईयर ग्रांट्स और
60 मिलियन डॉलर के कॉन्ट्रैक्ट्स
को फ्रीज कर दिया। ये
फंड्स हार्वर्ड के बायोमेडिकल रिसर्च
जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में इस्तेमाल हो
रहे थे, जिनमें टीबी,
HIV, और ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी जैसे विषय शामिल
हैं। कुछ विशेषज्ञों का
मानना है कि यह
कदम न केवल हार्वर्ड,
बल्कि अमेरिका की पूरी अकादमिक
और रिसर्च कम्युनिटी के लिए एक
चेतावनी है।
हालांकि
हार्वर्ड के पास 53.2 अरब
डॉलर का विशाल एंडोमेंट
फंड है, लेकिन विशेषज्ञों
का कहना है कि
यह फंड पूरी तरह
से फ्रीज की गई ग्रांट्स
की भरपाई नहीं कर सकता,
क्योंकि इसका ज्यादातर हिस्सा
डोनर-निर्देशित प्रोजेक्ट्स के लिए रिजर्व
है। इस बीच हार्वर्ड
के फैसले को कई लोग
साहसिक कदम मान रहे
हैं। कैम्ब्रिज में स्थानीय लोगों
और यूनिवर्सिटी समुदाय ने सप्ताहांत में
विरोध प्रदर्शन भी किए, जिसमें
ट्रम्प प्रशासन के इस कदम
की आलोचना की गई।
यह विवाद यहीं खत्म नहीं
हुआ है। अमेरिकन एसोसिएशन
ऑफ यूनिवर्सिटी प्रोफेसर्स ने ट्रम्प प्रशासन
के खिलाफ मुकदमा दायर किया है,
जिसमें दावा किया गया
है कि फंडिंग रोकने
की प्रक्रिया में सिविल राइट्स
एक्ट का पालन नहीं
किया गया। दूसरी ओर
ट्रम्प प्रशासन ने संकेत दिए
हैं कि वह अन्य
यूनिवर्सिटीज़ जैसे प्रिंसटन, कॉर्नेल,
और यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिलवेनिया के
फंड्स की भी समीक्षा
कर सकता है।
हार्वर्ड
का यह कदम एक
बड़े सवाल को जन्म
देता है: क्या अकादमिक
स्वतंत्रता और सरकारी नियंत्रण
के बीच का यह
टकराव अमेरिकी शिक्षा व्यवस्था के भविष्य को
प्रभावित करेगा? फिलहाल हार्वर्ड ने स्पष्ट कर
दिया है कि वह
अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं
करेगा भले ही इसके
लिए उसे भारी कीमत
चुकानी पड़े।
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