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लोकसभा ने विपक्ष के हंगामे के बीच एक राष्ट्र, एक चुनाव विधेयक पेश किया

 

लोकसभा ने विपक्ष के हंगामे के बीच एक राष्ट्र, एक चुनाव विधेयक पेश किया

एक ऐतिहासिक घटनाक्रम में मंगलवार को लोकसभा में संविधान (एक सौ उनतीसवां संशोधन) विधेयक 2024 और संघ राज्य क्षेत्र कानून (संशोधन) विधेयक 2024 को औपचारिक रूप से पेश किया गया। इन विधेयकों में 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' के क्रियान्वयन का प्रस्ताव है, जिसका उद्देश्य लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराना है। गहन बहस के बाद विधेयकों को आगे की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेज दिया गया।

 

यह विधेयक एक गरमागरम सत्र के बाद पेश किया गया जिसमें विपक्षी दलों ने सरकार पर संघीय ढांचे को कमजोर करने का आरोप लगाया। कड़े प्रतिरोध के बावजूद विधेयकों को 269 मतों के साथ पक्ष में और 198 मतों के विपक्ष में पेश किया गया। उल्लेखनीय रूप से इस सत्र में नए संसद भवन में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग प्रणाली का पहला उपयोग किया गया। मतदान के बाद कार्यवाही कुछ समय के लिए स्थगित कर दी गई।

 


सरकार का रुख

 

कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने विधेयक पेश किए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सिफारिश के बाद उन्हें जेपीसी को भेजने की सरकार की इच्छा की पुष्टि की। गृह मंत्री अमित शाह ने सदन में सरकार का रुख स्पष्ट करते हुए कहा, "जब कैबिनेट में प्रस्ताव को मंजूरी दी गई, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुझाव दिया कि विधेयकों को गहन विचार-विमर्श के लिए जेपीसी को भेजा जाए।"

 

केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक  में दिल्ली, जम्मू और कश्मीर और पुडुचेरी में एक साथ चुनाव कराने के लिए बदलाव का भी प्रस्ताव है।

 

विपक्ष की प्रतिक्रिया

 

कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने विपक्ष के आरोप का नेतृत्व करते हुए कहा कि ये विधेयक संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करते हैं जो संघवाद की रक्षा करता है। "संघवाद हमारे लोकतंत्र की आधारशिला है और इसे विधायी अतिक्रमण से नहीं बदला जा सकता है," तिवारी ने कहा।

आप सांसद संजय सिंह कहते हैं 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' बिल पर वे कहते हैं, "इससे देश में खरीद-फरोख्त और तानाशाही को बढ़ावा मिलेगा... जब अलग-अलग जगहों पर चुनाव होते हैं, तो सरकार को कीमतें कम करने के लिए मजबूर होना पड़ता है..."

 

डीएमके नेता टीआर बालू ने भी इसी तरह की चिंता जताई और कहा, "यह विधेयक संघीय व्यवस्था के विरुद्ध है और मतदाताओं के पांच साल तक सरकार चुनने के अधिकार को कमजोर करता है।"

 

समाजवादी पार्टी के सांसद धर्मेंद्र यादव ने विधेयकों के समय की आलोचना करते हुए कहा, "संविधान की प्रशंसा करने के कुछ ही दिनों के भीतर सरकार ने ऐसा कानून बना दिया है जो इसकी मूल भावना पर प्रहार करता है।" यादव ने संविधान के मूल प्रारूपकारों की बेजोड़ बुद्धिमत्ता पर भी जोर दिया।

 

तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी ने भी विधेयकों का विरोध किया और चेतावनी दी कि सातवीं अनुसूची के तहत संरक्षित राज्यों की विधायी स्वायत्तता खतरे में है। "राज्य विधानसभाएं संसद के अधीन नहीं हैं और उनकी स्वायत्तता का सम्मान किया जाना चाहिए," बनर्जी ने तर्क दिया।

 

 आगे की राह

 

अब जब विधेयक जेपीसी के पास जा रहे हैं तो 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' की बहस जारी रहने वाली है, क्योंकि दोनों पक्ष अपने-अपने रुख पर अड़े हुए हैं। जबकि सरकार दक्षता और लागत बचत के उद्देश्य से चुनावी सुधारों पर जोर दे रही है, विपक्ष इस बात पर जोर दे रहा है कि इस तरह का कदम संविधान में निहित संघीय सिद्धांतों को कमजोर करता है।


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