गुजरात के द्वारका में द्वारकाधीश मंदिर सिर्फ एक पूजा स्थल नहीं है यह इतिहास, पौराणिक कथाओं और आध्यात्मिकता का भंडार है। जबकि कई लोग भगवान कृष्ण के द्वारका से संबंध के बारे में जानते हैं, ऐसे कई कम ज्ञात तथ्य हैं जो इस मंदिर को और भी दिलचस्प बनाते हैं। हमारे साथ जुड़ें क्योंकि हम द्वारकाधीश मंदिर के छिपे हुए रत्नों का पता लगाते हैं और इसके आसपास की आकर्षक कहानियों को उजागर करते हैं।
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द्वारका भगवान
कृष्ण
का
राज्य:
द्वारका
जिसे द्वारकाधीश के नाम से
भी जाना जाता है। द्वारकाधीश का अनुवाद 'द्वारका का राजा' होता
है। भगवान कृष्ण अपनी नगरी मथुरा छोड़ने के बाद यहीं
आये थे। किंवदंती है कि यह
मंदिर भगवान कृष्ण के महल के
स्थान पर स्थित है
जिसका निर्माण 5000 साल पहले उनके पोते वज्रनाभ ने किया था।
स्वर्ग द्वार
और
मोक्ष
द्वार:
मंदिर
में दो अलग-अलग
द्वार हैं - स्वर्ग द्वार जो स्वर्ग के
प्रवेश द्वार का प्रतीक है
और मोक्ष द्वार जो मुक्ति के
मार्ग का प्रतिनिधित्व करता
है। भक्तों को स्वर्ग के
द्वार से प्रवेश करने
और मुक्ति के द्वार से
बाहर निकलने के लिए 56 सीढ़ियाँ
चढ़नी पड़ती हैं जो आध्यात्मिक ज्ञान
की ओर एक प्रतीकात्मक
यात्रा है।
द्वारका: जलमग्न
शहर:
एक
दिलचस्प किंवदंती बताती है कि भगवान
कृष्ण द्वारा निर्मित मूल द्वारका शहर समुद्र के नीचे डूबा
हुआ है । हाल ही में पानी
के भीतर की गई खुदाई
से समुद्र के नीचे वास्तुशिल्प
अवशेषों की उपस्थिति की
पुष्टि हुई है जिससे मंदिर
के इतिहास में रहस्य की एक परत
जुड़ गई है।
भगवान कृष्ण
की
काली
मूर्ति:
द्वारकाधीश
मंदिर में भगवान कृष्ण की 15वीं सदी की काले रंग
की मूर्ति है। यह उल्लेखनीय मूर्ति
चूना पत्थर का उपयोग करके
तैयार की गई थी
और चालुक्य स्थापत्य शैली का अनुसरण करती
है जो प्राचीन भारत
की समृद्ध विरासत और शिल्प कौशल
को प्रदर्शित करती है।
चार धामों
में
से
एक:
द्वारकाधीश मंदिर जिसे जगत मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा दौरा किए गए चार पवित्र तीर्थ स्थलों, चार धामों में एक विशेष स्थान रखता है। अन्य चार धाम बद्रीनाथ, रामेश्वरम और पुरी हैं, जो द्वारका को एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक गंतव्य बनाते हैं।
रुक्मणी मंदिर:
द्वारकाधीश
मंदिर से सिर्फ 2 किलोमीटर
की दूरी पर रुक्मणी मंदिर
है जो भगवान कृष्ण
की पत्नी रुक्मणी को समर्पित है।
इस मंदिर का अस्तित्व उस
किंवदंती पर आधारित है
जहां रुक्मणी को भगवान कृष्ण
से अलग होने का श्राप मिला
था।
प्राचीन वास्तुकला:
जगत मंदिर पांच मंजिला है और 72 स्तंभों पर टिका हुआ है। जगत मंदिर अनुमानतः 2000 से 2200 वर्ष पुराना है। ये स्तंभ प्राचीन भारत की स्थापत्य प्रतिभा के प्रमाण के रूप में खड़े हैं और सदियों के बीतने के गवाह हैं।
गोमती नदी:
पवित्र
सहायक
नदी:
यह
मंदिर पवित्र गंगा की सहायक नदी
गोमती नदी के तट पर
स्थित है। मंदिर के बगल में
स्थित गोमती घाट भक्तों और आगंतुकों के
लिए समान रूप से बहुत महत्व
रखता है। गोमती घाट तक पहुंचने के
लिए मंदिर के स्वर्ग द्वार
से 56 सीढ़ियां उतरनी पड़ती हैं।
स्कूबा डाइविंग
साइट:
गुजरात
के ओखा तट से 3 किलोमीटर
दूर स्थित बेट द्वारका द्वीप अब एक स्कूबा
डाइविंग स्थल है। पर्यटकों के पास जलमग्न
द्वारका शहर का पता लगाने
का अनूठा अवसर है जो उनकी
आध्यात्मिक यात्रा में एक साहसिक मोड़
जोड़ता है।
निष्कर्ष:
द्वारका
में द्वारकाधीश मंदिर सिर्फ एक पूजा स्थल
नहीं है बल्कि इतिहास
और आध्यात्मिकता का खजाना है।
इसकी समृद्ध पौराणिक कथाएं, अद्वितीय वास्तुकला और भगवान कृष्ण
से संबंध दुनिया भर से अनगिनत
भक्तों और खोजकर्ताओं को
आकर्षित करते हैं। द्वारका के जलमग्न शहर की खोज मिथक
और किंवदंती के स्थायी आकर्षण का एक प्रमाण है। यह हमें समय के माध्यम से एक यात्रा
पर निकलने के लिए आमंत्रित करता है जहां इतिहास और पौराणिक कथाओं के बीच की सीमाएं
धुंधली हो जाती हैं और अतीत सबसे असाधारण तरीके से जीवित हो जाता है।
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