बिहार
सरकार ने राज्य में
चल रहे जाति आधारित सर्वेक्षण पर अंतरिम रोक
लगाने के पटना उच्च
न्यायालय के आदेश को
चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय का रुख किया
है।
पृष्ठभूमि
पटना उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि जाति आधारित सर्वेक्षण को तुरंत रोका जाए और अंतिम आदेश पारित होने तक पहले से एकत्र किए गए डेटा को सुरक्षित रखा जाए। अदालत ने चिंता व्यक्त किया है कि सरकार राज्य विधानसभा में विभिन्न दलों के नेताओं के साथ सर्वेक्षण डेटा साझा करना चाहती है। जाति सर्वेक्षण का पहला दौर जनवरी में आयोजित किया गया था जबकि दूसरा दौर 15 अप्रैल को शुरू हुआ और 15 मई तक चलने वाला था।
बिहार सरकार के तर्क
शीर्ष अदालत के समक्ष अपनी अपील में बिहार सरकार ने कहा है कि अन्य प्रावधानों के अलावा जाति-आधारित डेटा का संग्रह अनुच्छेद 15 और 16 के तहत एक संवैधानिक आदेश है। इसने आगे कहा कि किसी भी नागरिक के अधिकारों का उल्लंघन नहीं होगा क्योंकि उच्च न्यायालय हमेशा रिट याचिका के अंतिम निर्णय के अधीन डेटा के संरक्षण का निर्देश दे सकता है। सरकार ने यह दावा किया कि डेटा के संग्रह की रोक राज्य के लिए अपूर्ण नुकसान पहुंचाएगी क्योंकि अगर अंत में राज्य की कार्रवाई अवैध नहीं साबित होती है तो राज्य को और खर्च और लोगिस्टिक व्यवस्था की जरूरत होगी जो सार्वजनिक खजाने पर बोझ बनेगी।
सरकार ने कहा कि पूरी मशीनरी जमीनी स्तर पर थी और विवाद के अंतिम निर्णय के अधीन अभ्यास को पूरा करने में कोई नुकसान नहीं होगा। सरकार के आवेदन में कहा गया है, "जाति सर्वेक्षण पर रोक, जो पूरा होने के कगार पर है राज्य को अपूरणीय क्षति पहुंचाएगा और पूरी कवायद पर प्रभाव डालेगा।"
पटना हाई कोर्ट का आदेश
कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पटना उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह जाति-आधारित सर्वेक्षण को तुरंत बंद करे और यह सुनिश्चित करे कि पहले से ही एकत्र किए गए डेटा को सुरक्षित रखा जाए और अंतिम आदेश पारित होने तक किसी के साथ साझा न किया जाए। अदालत ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि सरकार की मंशा राज्य विधानसभा में विभिन्न दलों के नेताओं के साथ सर्वेक्षण से डेटा साझा करने की थी। अदालत ने यह भी कहा कि निश्चित रूप से निजता के अधिकार का बड़ा सवाल उठता है जिसे सुप्रीम कोर्ट ने जीवन के अधिकार का एक पहलू माना है।
निष्कर्ष
जाति
आधारित सर्वेक्षण पर पटना उच्च
न्यायालय के आदेश को
उच्चतम न्यायालय में चुनौती देने के बिहार सरकार
के कदम से पहले से
ही विवादास्पद मुद्दे के और बढ़ने
की संभावना है। जबकि राज्य सरकार ने तर्क दिया
है कि जाति-आधारित
डेटा का संग्रह एक
संवैधानिक जनादेश है। निजता के अधिकार और
ऐसे डेटा के संभावित दुरुपयोग
के बारे में चिंता बनी हुई है। मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का
इंतजार है।